ज़िन्दगी
ज़िंदगी एक बोझ है,
आज के इंसान की यही खोज है ।
अरे ज़िंदगी तो एक बहार है,
जीना आए तो प्यार, नहीं तो पहाड़ है ।
ज़िंदगी तो एक गीत है,
उसे जीना ही एक जीत है ।
जो इसे ना जी सके, उसपर धिक्कार है,
डर – डरकर जो जीता है, उसकी ज़िंदगी का क्या आधार है ?
अरे जीवन तो भगवान की अनमोल देन है,
जो रोकर इसे काटते हैं, उनके लिए ये छूटी हुई रेल है ।
ज़िंदगी एक जुनून है, ज़िंदगी एक आशा है,
हर पल ख़ुशी है, ये ना निराशा है ।
अरे इंसान बनने के लिए तो देवता भी तरसते हैं,
कलयुग में तो इंसान भी इंसान पर बरसते हैं ।
ज़िंदगी एक समझोता है, ज़िंदादिली का मुखौटा है,
जीते सभी हैं, पर अमर वही है जो परोपकार के बीज बोता है ।
इंसान तो स्वभाव से ही राजा है,
हक़ीक़त सुनते ही उसे क्रोध आता है ।
गलतियाँ दोहराने की उसकी पुरानी आदत है,
अपने दोष दूसरों पर लादना ही तो बगावत है ।
इंसान के लिए आज ज़िंदगी काटना भी मुश्किल है,
ज़िंदगी से वह ऐसे खफ़ा है, जैसे कुछ नहीं हासिल है ।
कौन कहता है इंसान गुणों में अंजाना है ?
इंसान के पास तो गलतफ़हमियों का खज़ाना है,
सबकुछ पाकर भी इंसान के पास दुखों का बहाना है,
चाँद पर पहुँचने के बावजूद भी आज इंसान को बहुत कुछ सिखाना है,
बहुत कुछ सिखाना है …
इरफ़ान ख़ान, हर दिल की जान
इरफ़ान ख़ान,
हर दिल की जान,
एक अलग पहचान,
एक अलग पहचान । ४
१९६७ में जन्में साहबज़ादे
बुलंद व नेक इरादे,
जो कहते, वो निभाते वादे,
अमल में लाते, ना सिर्फ बातें । ८
जन्म राजस्थान जयपुर,
हरदम विवादों से दूर
तपकर बना कोहीनूर,
था शांति का दूत । १२
फिल्म अभिनेता,
चलचित्र निर्माता,
सबकुछ था आता,
कुछ भी न छुपाता । १६
अहिंसा प्रिय व्यक्ति,
ईश्वर की अभिव्यक्ति,
अद्भुत थी शक्ति,
भरसक की भक्ति । २०
था अच्छा इंसान,
भला मानस जवान,
वो गीता कुरान,
सबका सम्मान । २४
था खुली किताब,
ना ऊंचे ख़्वाब,
था किनारा व नांव,
भोला भाला गाँव । २८
मुस्लिम परिवार,
से थे भाईजान,
देश की कमान,
सच्चा वो पठान । ३२
थी धन की कमी,
पर दिल का धनी,
भिन्न सी रोशनी,
जो कभी ना थमी । ३६
क्रिकेट का था शौक़,
अभिनय में लाया संयोग,
किया सदुपयोग, किया सदुपयोग,
अभिनव प्रयोग, अभिनव प्रयोग । ४०
राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय,
था प्रशिक्षण कार्यालय,
वो मंदिर शिवालय,
इंसाफ का न्यायालय । ४४
छोटे पर्दे पर की शुरुआत,
‘भारत एक खोज’ और ‘श्रीकांत’
ना पीछे मुड़ा, बांध ली थी गांठ,
ना चकाचोंध, साधारण प्रांत । ४८
‘सलाम बॉम्बे’ थी पहली फिल्म,
गजब अभिनय, था ज्ञान व इल्म,
वो ताज़ा सैर, वो एक तिलिस्म,
वो पावन रूह, खुशनुमा था जिस्म । ५२
चुनोतियाँ स्वीकार, किए संघर्ष,
ना मानी हार, परिश्रम शाश्वत,
हुआ उत्तीर्ण, मेहनत सफ़ल,
निकाल लिया हर मुसीबत का हल । ५६
कला की छोड़ी अमिट छाप,
भरपूर तपस्या, किए सदैव जाप,
भागे अंधविश्वास, ओझल अभिशाप,
वो साहसी वीर, वो एक प्रताप । ६०
अभिनय उसका गया सराहा,
अदाकारी का लोहा मनवाया,
सदियों में ऐसा एक ही आया,
जिसको सबने था अपनाया । ६४
अर्जित किए कई पुरस्कार,
सही मायनों में था हकदार,
उसकी अलग ही थी कुछ धार,
नतमस्तक हो जाती दीवार । ६८
‘हासिल’ से किया सबकुछ हासिल,
सर्वश्रेष्ट खलनायक हुआ पुरस्कृत,
हर वर्ग को किया प्रभावित,
दर्शकों में मशहूर, हुआ प्रचलित । ७२
‘पान सिंह तोमर’,
श्रेष्ठ अभिनेता बतोर,
पुरस्कृत विभोर,
गूंज चारों और । ७६
‘हिन्दी मीडियम’,
दिखाया दमखम,
सर्वश्रेष्ठ कलाकार,
सम्मानित तुम । ८०
कई फिल्में उसकी हैं प्रख्यात,
‘पीकू’, ‘लंच बॉक्स’, ‘हैदर’, ‘तलवार’,
ज़ाहिर करती हैं जज़्बात,
तनाव से दिलाती हैं निजात । ८४
पदम्श्री का मिला सम्मान,
बॉलीवुड तक नहीं सीमित श्रीमान,
हॉलीवुड में भी बनाई पहचान,
रचा इतिहास, न कभी बखान । ८८
‘स्लमडॉग मिलियनेयर’, ‘लाइफ ऑफ़ पाई’,
कहाँ कहाँ नहीं ख्याति पाई,
सदैव ख़ुश, पीड़ा छुपाई,
उससे तुलना, जैसे ऊँट को राई । ९२
‘ए माइटी हार्ट’, ‘द अमेजिंग स्पाइडर मैन’,
वो था जैसे सुपर मैन,
था परिपक्व, कहते थे नैन,
निष्ठावान, कर्मठ, था अमन चैन । ९६
थे अलग अंदाज़,
तस्वीर करे बात,
वो जैसे ताज,
मेरी ही आवाज़ । १००
दे डालीं ढेरों मिसाल,
मेरे आदर्श, दिग्गज कलाकार,
जुनून हर पल था सवार,
सकारात्मक थे विचार । १०४
खुदा का रूप,
सुबह की धूप,
बेजोड़ अनूप,
वो बहुत ही ख़ूब । १०८
माथे की उसने लकीरें मिटा,
काम को दिया पहला दर्जा,
कुदरत का कहूँ था करिश्मा,
देखा नहीं मैंने उस जैसा मिर्ज़ा । ११२
ज़मीन से जुड़ा था, वो था अवतार,
साफ़ सुथरी छवि, थी वो पतवार,
अपने दम पर बनाया घर संसार,
ज़बरदस्त अभिनय शैली, था शानदार । ११६
ढूंदता था मैं ख़ुदको उसमें,
उस जैसे कान, मुह व आँखें,
अब बस उसकी समेटे हूँ यादें,
अब बस उसकी समेटे हूँ यादें । १२०
था जैसे एक रिश्ता,
वो कोई फ़रिश्ता,
थी बहुत विशिष्टता,
आदर और शिष्टता । १२४
जादुई अदाकारी,
था सबपर भारी,
वो मँझा खिलाड़ी,
वो मँझा खिलाड़ी । १२८
स्वाभाविक प्रवक्ता,
वो सबकी आवश्यकता,
थी सहजता सार्थकता,
स्तर छू नहीं कोई सकता । १३२
किए बेहतरीन किरदार,
झुझारूपन का था अंबार,
था बेबाक, पर समझदार,
छुए दिल, किए चमत्कार । १३६
काबिलियत की थी भरमार,
बहुगुणी प्रतिभा का भंडार,
था दमदार, वो असरदार,
दीवानापन, था हिन्द से प्यार । १४०
बोलता था बढ़ चड़कर उसका काम,
मुरझाए चेहरों पे लाता था मुस्कान,
समाज में दिए काफ़ी योगदान,
वो रौनक, हर दिल को गुमान । १४४
जितनी तारीफ, उतनी कम,
निःशब्द, मौन, गमगीन नभ,
धरा भी जैसे रुदन, है नम,
बहुत लगे अब खालीपन । १४८
सच्चा था वो देश भक्त,
लड़ता रहा वो अंत तक,
विजयी हुआ, हुआ वो है अमर,
किसने कहा – हुआ उसका निधन ? १५२
भावभीनी मेरी श्रद्धांजलि,
अर्पण भाव की पुष्पांजलि,
याद रहेगा गली गली,
दिल में उसकी जगह बनी । १५६
कुछ दिन पहले के ये उसके शब्द,
“रहो सकारात्मक, ना कोई विकल्प”,
ऐसे महानायक होते हैं अल्प,
जिस माँ ने दिया जन्म, उसपे है गर्व । १६०
जाते जाते गया वो अपनी बात रख,
“पहली बार ज़िंदगी रहा हूँ चख”,
होंगे वो कितने भावुक क्षण,
मुझमें विध्यमान है वो कण कण । १६
इंसान नहीं, आप ईश्वर…
स्वीकार कीजिए कृतज्ञता,
देशभक्ति की आप पटकथा ।
दिल से आभार,
आप ना मानें हार ।
हर समय कार्यशील,
जैसे पत्थर मील ।
करें देश की सेवा,
ना रात, ना दिन देखा ।
आप हैं जैसे सैनिक,
तत्पर और निर्भीक ।
छोड़ परिवार व सुख,
करें देखभाल, भूल ख़ुद ।
आपके अनथक प्रयास,
डालते हममें आस ।
हम होते स्वस्थ,
आपकी मशक्कत ।
आप डालते ऊर्जा,
खिले चेहरा मुरझा ।
भावुक आज है मन,
तारीफ़ अनंत, शब्द कम ।
आंखें आज हैं नम,
देख आपका दमखम ।
पानी में जैसे नमक,
जाना आपका महत्व ।
अनगिनत उपकार,
प्रसन्नतापूर्वक उपचार ।
भाव से धन्यवाद,
कम पड़ रहे जज़्बात ।
आपके बहुत अहसान,
अब तक था अनजान ।
शुक्र गुज़ार और गर्व,
आप निभा रहे धर्म ।
नमन करूं हाथ जोड़,
ना आप, तो मैं कमज़ोर ।
आपका योगदान,
ना चाहे प्रमाण ।
लीजिए अभिवादन,
चित्त से अभिनन्दन ।
वैद्य, चिकित्सक, डॉक्टर,
इंसान दिखें, पर ईश्वर…
इंसान दिखें, पर ईश्वर…
बन जाऊं मैं काश …. जैसे योगी कुमार विश्वास …
बन जाऊं मैं काश,
जैसे योगी कुमार विश्वास,
हरदम यही आस…
हरदम यही आस ।
आ जाए प्रकाश,
उन जैसा कि काश,
भरसक प्रयास …
भरसक प्रयास ।
ना किंचित अंध विश्वास,
है लबालब आत्म विश्वास,
इसलिए वे हैं ख़ास…
इसलिए वे हैं ख़ास ।
करता हूँ मैं अभ्यास,
होता भी हूँ निराश,
मैं थल, वे आकाश…
मैं थल, वे आकाश ।
वे जैसे कि पलाश,
कद्र जानें हर श्वास,
ना तुलना, वे पचास …
ना तुलना, वे पचास ।
ना करते कभी परिहास,
दें मनोबल, जो हताश,
हरदम मेरे पास …
वे हरदम मेरे पास ।
मनमौजी और बिंदास,
मस्ती संग हर्षोल्लास,
मैं उनका हूँ दास …
मैं उनका हूँ दास ।
हैं रोचक उपन्यास,
रच रहें हैं इतिहास,
वे मखमल, ना कपास …
वे मखमल, ना कपास ।
झेले होंगे खूब वनवास,
सुनी होंगी भी बकवास,
हीरे निकले, जब तराश …
हीरे निकले, जब तराश ।
ना चाहें भोगविलास,
लिया जैसे है सन्यास,
शांति ली अब तलाश …
शांति ली अब तलाश ।
त्यागा है तख्तोताज,
सुनें ज़मीर की आवाज़,
हिन्द को इनपर नाज़ …
हिन्द को इनपर नाज़ ।
अद्भुत इंका है अंदाज़,
मन जैसे शोभन लिबास,
क्या कहने – शाबाश …
क्या कहने – शाबाश ।
विनम्र जैसे कि अब्बास,
सीधे सच्चे हैं सुभाष,
करें कुरीतियों का नाश …
करें कुरीतियों का नाश ।
अपकारों का इनसे निकास,
उपकारों का इनमें निवास,
भले मानस डॉ विश्वास …
भले मानस डॉ विश्वास ।
ना होते, ना करते संत्रास,
विचार खुल्ले, ना कारावास,
कुएं जैसे बुझाते प्यास …
कुएं जैसे बुझाते प्यास ।
लिखा उपरोक्त सब होशोहवास,
मैं गुलाम, वे इक्का ताश,
ना मिले तो क्या दूरभाष …
ना मिले तो क्या दूरभाष !