ज़िन्दगी की रफ़्तार तेज़ है,
और उलझनें हैं बेहिसाब
जूझते रहें या थम जाएँ,
कुछ बताइये तो हमें जनाब
मुद्दत से हैं जिसके इंतज़ार में,
उनका नहीं आता कोई जवाब
तकते रहें राहें या लौट जाएँ,
कुछ समझाइये दिल को साहब
मसरूफियत कुछ इतनी बढ़ी,
कि रिश्ते हो रहे हैं ख़राब
दौड़े मंजिल को या पलट जाएँ,
कुछ तो दीजिये हमें जवाब
शरारतें हुईं कम और चुप रहते हैं,
जिंदगी में बढ़ सा गया है तनाव
संजीदा रहें या लौटा लाएँ बचपना,
कहो क्या उतार फेंकें ये नकाब
घुटन सी हो रही हैं इस माहौल में,
हर इंसान सहमा और है दबाव
हम भी यूँ डरते रहें या कुछ बोलें,
आप ‘गर कहें तो ला दें इंक़लाब
बहुत ही शानदार प्रस्तुति है भैया। अधिकांश लोगों के जीवन की यही कहानी है। जद्दोजेहद के बीच ज़िन्दगी गुजर रही है।