मौन को मौन सुन सके, तब कोई बात है
बस दोनों समझते रहें, कि क्या जज़्बात है
तेरी नजरें पूछती रहीं, सवाल मासूम से
मेरे हर चुप के पीछे, यादोँ की बारात है
कुछ रिश्तों का तो अनाम ही रहना अच्छा
फासले ही सही, फिर भी मुसलसल साथ है
खामोशी मेरी तुम सुन रहे, मुझे ये लगता रहा
कहा नहीं मैंने कुछ, न तुम समझे क्या हालात है
ढीली पड़ने लगी है, इन हथेलियों की पकड़
शायद देने वाला, वो हिज्र की सौग़ात है
हम पता नहीं चलने देंगे, ये ज़माने को
वो बेवफा निकले हैं, ये आपस की बात है
हमारे इश्क की किस्मत में था, खामोश रहना
चल आज कुछ बोलें, कि ये आखिरी मुलाकात है
(ये रचना ‘खिलते हैं गुल यहाँ’ में प्रकाशित हो चुकी है)
अति सुन्दर !!