जो तुम गर साथ होतीं
कुछ और ही बात होती
दर्द में भी मुस्काते हम
भले ही घनेरी रात होतीं
तूफान फिर भी आते
तपिश तब भी सताती
सह जाते जो तुम सहलाती
काश कि तुम साथ होतीं
खुद से बन गए अनजान
भूले हैँ हम अपनी पहचान
हम को हम ही से मिलाती
जो गर तुम साथ होतीं
जीवन कठिन है या सरल
ये देखने का नज़रिया है
समझते जो तुम समझाती
काश कि तुम साथ होतीं
क्यूँ फिजूल अब करें मलाल
जिंदगी से अब कैसे सवाल
काश तब होते ऐसे जज्बाती
तो आज तुम जरूर साथ होतीं