अपने देश से दूर आ बसा
ये देश लगने लगा है अपना
देह और मन की ये यात्रा
अब लगे जैसे कोई सपना
जब आया, था मैं अनजाना
सब तरफ थी अजनबी राहें
इसने कुछ ऐसे अपनाया कि
मुस्काते चेहरे हैं खुली बाहें
उम्मीद के घरोंदे को
तजुर्बों से सजाया है
घर से दूर इस घर को
शिद्दत से बसाया है
मेरे गाँव के हरे भरे खेत
यहां फूलों के सिलसिले हैं
यादों और बातों के बीच
नज़ारे हर ओर खिले हैं
नहरों में यहां ढूंढा किया
अपनी गंगा की कल कल
माना ये है नसीब मेरा पर
उसके लिए है दिल मचल
पवन चक्की को देखकर
यादों की लहर आती है
इसको चलाने वाली हवा
स्वदेश की खुश्बू लाती है
शुरुआत से शुरू कर
यहाँ पहचान बनाई है
कुछ जानते है, मानते हैं
यही बस मेरी कमाई है
वहां मेरी जड़ें वहीँ बना
तो इसने मुझे संवारा है
वो तो मेरा देश है ही
ये देश भी मुझे प्यारा है
प्रवासी जीवन को सही दर्शाया है