एक वो भी दौर था, जब तुम ही तुम थे
हम दोनों एक दूजे में गुम थे
सालो दर साल, बीत गए मिनटों में
तुम्हारे साथ जैसे एक उम्र बीत गयी हो कुछ घंटो में
फिर एक वो भी दौर आया जब हर ओर तन्हाई थी
हर पल, हर लम्हा, तेरी यादो कि लहार सी आयी थी
यूँ तो दुनिया साथ थी पर हम भीड़ में अकेले
दिल में दर्द था और बाहर जिंदगी के मेले
लगता था, क्या तुम्हे कभी भुला भी पाएंगे ?
अपने वजूद से क्या तुम्हार खुशबू कभी निकल पाएंगे ?
एक ये भी दौर आया है, कि न तू है और तेरी याद भी नहीं
कुछ इस तरह बढ़ चली जिंदगी कि अब तेरी कोई बात ही नहीं
आज एक मुद्दत के बाद तुम्हारा ख्याल आया, तो सोचा कुछ लिख लिया जाए
अगले ही पल तुम्हारा ख्याल फिर चला जाएगा
पता नहीं आज के बाद, फिर ये कब आएगा