हर प्रवास के पीछे एक आस है
कुछ पाने की
ज़माने को दिखाने की
अपना संजोए रखकर
नया कुछ अपनाने की
हर प्रवास के पीछे कुछ अधूरा है
सब कुछ मिलकर भी नहीं हुआ पूरा है
दर्द अपनो से दूरी का
पांव जमाने की मजबूरी का
अकेले में रोने का
सब होकर भी खोने का
हर प्रवास के पीछे एक विश्वास है
कुछ मिलेगा इसकी आस है
नई मिट्टी नई जमीन का एहसास है
अपनों से दूर नए नाते आस-पास है
नई भूमि पर जो मिला वह खास है
हर प्रवास के पीछे इक ख़्वाब पला है
अनकही खानाबदोशी की ख़ला है
बहुत खोकर थोड़ा कुछ मिला है
मुसलसल इंतज़ार जो हर बार टला है
हर प्रवास के पीछे कुछ त्याग है
हर पल निरंतर जलती आग है
जहां होना था वहां आए नहीं
कुछ रिश्ते हमने निभाए नहीं
गिरते उठते संभलते कट ही गया है
उस और इस देश में बराबर बंट ही गया है
शुरुआत से शुरू कर, यहाँ पहचान बनाई है
कुछ जानते, मानते हैं, यही बस मेरी कमाई है
उसने बनाया, इसने संवारा है
वो तो मेरा है ही, ये देश भी मुझे प्यारा है