मेरे बाबा, किस बात पर, हो मुझसे नाराज
अनसुनी कर रहे हो, या आ ही नहीं रही मेरी आवाज
एक वो भी दौर था – जब मेरी हर बात सुन लेते थे
मैं जितना मांगता था – उससे ज्यादा ही दे देते थे
वो शिरडी में, आपके दर पर होती थी, अपनी ढेर सारी बातें
आपके आशीर्वाद की छाया में, कटते थे – मेरे दिन, मेरी रातें
एक ये भी दौर आया है – ऐसा लगता है आप नाराज हो
हर एक चीज कर रही है ये इशारा, कि जैसे आपकी ही आवाज हो
दोनों हाथ फैलाये, तेरे दर पर खड़ा है सवाली
इसे भर दो मेरे बाबा, जो मेरी झोली पड़ी है खाली
अपनी इस नाराजगी का सबब तो बताइये
आपको खुश करने के लिए, क्या करू ये सुझाइये
बाबा, अगर आप हठी हो तो आपका ये भक्त भी कुछ कम नहीं
चंद और दिनों आपकी नाराजगी झेलने में मुझे गम नहीं
पर मैं आपको मना के ही मानूंगा बाबा
ये एक भक्त का, अपने बाबा से है वादा