मैं राम का राम मेरे , बाकी सब है माया
बड़ी बाट जोही रघुवर, तब ये दिन आया
जो थे हनुमान के सीने, और तुलसी के छंदों में,
हमारी नासमझी ने जकड़ा, ईश को अनुबंधों में ।
वैसे सर्वव्यापी हो राघव, था जरूरी ये ठौर,
मर्यादा के मंदिर की ओर, बढ़ा एक कदम और ।
पथराई अहिल्या को ज्यूँ, प्रतीक्षा थी तुम्हारी
त्यूं तरसे तेरे मदिर को हम, हे अमंगल हारी
सिखाया आपने त्याग, सत्य, गौरव, दया, मर्यादा,
पर प्रण पूरा करने में हमने, समय लगाया ज्यादा ।
श्री राम के जीवन में जैसे, कम थे चमत्कार
तभी तो मर्यादित रह हम, करते रहे इंतजार ।
क्षमा, दया, मर्यादा, त्याग तभी समझ में आता
जब इन भावों को, कोई बलशाली बतलाता ।
अनेक सालों की तपस्या, कई पीढ़ियों के त्याग,
इस जन्म में ये दिन आया, हैं धन्य हमारे भाग्य ।
हैं हंसती बंदनवार, सब पुलकित मेरे परेश,
प्रेम और सौहार्द्र के रस में, डूबा पूरा देश ।
चहुँ ओर खुशी, और है सर्व मंगल की आस,
हाथ जोड़ कर आपसे, विनती करे ‘विश्वास’।
(ये रचना ‘राम काव्य पीयूष’ में प्रकाशित हो चुकी है)