शाम थी, तन्हाई थी,
यादों की लहर सी आयी थी
हर लहर जुड़ी थी बीते कई लम्हों से – कुछ धुंधले, कुछ साफ़ से
कुछ मुझे अच्छी तरह याद हैं, कुछ अभी भी लगते है ख्बाव से
मैं और मेरी यादें थी, ना थी और कोई आहट
कभी आँखें नम हो गयी, तो कभी हलकी सी मुस्कराहट
कुछ ऐसे याद आये, जो सफ़र में मिले फिर जुदा हो गए
कुछ तो अब ढंग से याद भी नहीं, और कुछ खुद के खुदा हो गए
किसी की बातें याद आयी, किसी का चेहरा याद आया
किसी की मुस्कराहट तो किसी का रोना याद आया
कोई जानबूझ के रुला गया था, किसी ने प्यार से सहलाया
किसी ने थामा था हाथ, तो कोई साथ छोड़ के भुला गया
ऐसा लगता है कि साल दर साल बीत गए मिनटों में
एक उम्र ही कट गयी है कुछ घंटो में
जो बीत गया उस पर गम नहीं
जो मिल गया वो किसी से कम नहीं
किसी ने सही ही कहा है –
यादों के धुंधले दर्पण में, बीते हर पल की छाया है
हर मोड़ पर मैंने जीवन के – कुछ खोया है, कुछ पाया है
(Poet humbly acknowledges that last two lines are are not written by poet.)