ये जो हर पल छूट रहा है
लम्हा लम्हा टूट रहा है
ये जो हाथों से खिसकी है
ये जिंदगी फिर किसकी है
क्यों है सूनेपन की आहट
और हर आहट पर घबराहट
तिल तिल कर तिलमिलाना
और गिर उठ कर डगमगाना
उखड़ती हुई साँसें, आंखों में नमी
कतरा कतरा हो रही, हवा की कमी
फ़िज़ाओं में क्या महक रहा है
अंदर और बाहर जो दहक रहा है
ये क्या है जो जीवन से बड़ा हो गया
तेरे मेरे सपनों के बीच, खड़ा हो गया
अब आगे क्या –
थोड़ी फ़िक्र, थोड़ी कदर
थोड़ी खैर, थोड़ी खबर
थोड़ी श्रद्धा, थोड़ा सबर
थोड़ा ‘विश्वास’, थोड़ा असर
ये तूफान बस थमने को है, रुकने वाला है
आप हिम्मत न छोड़िएगा, उस ओर उजाला है