सावन के धागे में पिरोये अलग अलग विचार…..
चंद अधूरे सपने और अनकहे मलाल
काश कुछ जिंदगी के पन्ने फिर लिख पाएं
कभी यूँ भी हो कि कुछ ऐसी हो बरसात
कुछ तो बने रहें और कुछ पन्ने धुल जाएं
क़तरा क़तरा और बूँद-बूँद ही मिले हो
कभी घनघोर घटा के जैसे तो आओ
सूखे तपते मरुस्थल से यहाँ खड़े हैं हम
रिमझिम सावन सा बरस कर तो भिगाओ
मुद्दतोँ बाद आज उनसे मुलाक़ात है
ए बादल जरा थम थम कर बरसना
उन्हें लगता है बारिश में भीगने से डर
हमें पड़ेगा फिर कई बरसों तरसना
ये अचानक बरसात क्या हुई
हमें तो जैसे नजराना मिल गया
वो जिद्द कर रहे थे जाने की
अब रोकने का बहाना मिल गया
बिजली जोर से कड़की है कहीं
किसी दीवाने का दिल टूटा होगा
सावन का ये अंदाज कुछ अजब है
आज फिर कोई किसी से छूटा होगा
ये बारिश भी न तेरी यादों सी है
कभी बूंदा-बांदी तो कभी घनघोर
अभी सुलझा रहे हैं तस्वीरों को तेरी
और फिर यकायक अश्कों में सराबोर
सावन के मौसम में भीगना तो आम है
इश्क़ की बारिश में भीगो तो बात बने
हम तुम्हें याद करें, वो बड़ी बात नहीं
तुम्हें हम याद आयें, तो कोई बात बने
तुम्हें लगता है सावन अच्छा, हमने ये जान लिया
तुमने कहा कि साथ भीगेंगे, हमने भी मान लिया
सावन भादों बसंत पतझड़, ये सब तो बहाने हैं
तब भी तेरे दीवाने थे, हम अब भी तेरे दीवाने हैं
(ये रचना ‘खिलते हैं गुल यहाँ’ में प्रकाशित हो चुकी है)
बढ़िया !!
सुन्दर.. वाह! कुछ तो बने रहें, कुछ पन्ने धुल जायें… वाह!
बहुत खूब, बरसात में भीगी ,आपकी पँक्तियाँ दिल को छू गई ,
वो जिद कर रहे थे जाने की,
हमे रोकने के बहाने मिल गये,
और ये भी,
कुछ तो बने रहे कुछ धुल जाये ।