भारत माँ के मस्तक पर दमकती जो बिंदी है
वो कोई और नहीं, मेरी मात्रभाषा हिंदी है
हिंदी ने जोड़ा देश को पूरब से पश्चिम तक
बहती उसमें ज्ञान की गंगा और कालिंदी है
वो जीवनरेखा जिसके बिन मेरा हिन्द अधूरा है
वो भाषा जिसके भाग्य में तो अब सिर्फ बुलंदी है
जिसको निराला, अज्ञेय और नीरज ने सींचा है
मेरा मान, मेरा सम्मान, मेरी पहचान हिंदी है
रहता हूँ परदेस में, पर हिंदी से मुझे प्यार
इसको बढ़ावा देते जाएँ, क्या पाबंदी है
मेरा ‘विश्वास’, मेरी आस, मेरे प्रेम की भाषा
मेरे हर भाव के ठहराव का आभास हिंदी है