मैं तब था परदेस में और जागा माँ का प्यार
हमारी बातें ख़त्म होती थी रो के ही हर बार
मां ने पूछा, अच्छा बेटा क्या याद मेरी आती है
दर्द छिपाकर मैंने बोला, फुर्सत कहाँ मिल पाती है
बेटा तुम्हारा सुना कमरा देख मन हुआ है भारी
माँ हम बहुत मस्ती में हैं, आप चिंता न करो हमारी
वो बोली, अच्छा क्या याद आता है मेरा दाल भात
अरे नहीं माँ, मैं उससे भी अच्छा खाता हूँ दिन रात
मुस्करा तब माँ बोली – मेरे लाल मुझसे क्यों छिपाता है
तेरा मन का हर ख्याल, तेरी बातों में नजर आता है
टूट गए तब सारे बांध, आँखों ने मानी हार
मैं रोया परदेस में, जब जागा मां का प्यार
मैं अब भी हूँ परदेस में और जब जागता है माँ का प्यार
कितनी भी हों पर बातें ख़त्म होती है रो के ही हर बार
वैसे तो वीडियो चैट होती है पर आपके स्पर्श को तरसता हूँ
माँ जब तेरी याद आती है न, मैं अपनी बेटी के गले लगता हूँ
आप इस डीपी में बहुत सुन्दर लग रही हो, जैसे हो मेहताब
मुस्का कर वो बोली – अब रहने लगी है तबियत कुछ ख़राब
अब तुम इतनी दूर बैठे हो, कुछ हुआ तो आ भी नहीं पाओगे
रुंधे गले से मैं बोला – मुझसे बिना पूछे आप कहाँ ही जाओगे
पर टूट गए तब सारे बांध, आँखों ने मानी हार
मैं फिर रोया परदेस में, जब जागा मां का प्यार
(इस रचना की एक पंक्ति जगजीत सिंह जी की एक ग़ज़ल से उधार ली है)
So touching and sentimental…I can totally relate to these lines…Beautiful!
Heart touching poem!!
A real love for the lovely mother👌👌🙏🏻🙏🏻
Speechless……….