थैंक्सगिविंग इस बार उस दिन आयी है
जब मैंने थैंक्स देने वालो की एक लम्बी फ़ेहरिस्त बनाई है –
पहला थैंक्स तुकाराम के बाजूओं की उस जकड को
गोलियां खाते रहे, पर ढीले न होने दिया उस पकड़ को
मरते मरते भी, अशोक काम्टे के उस निशाने को
थैंक्स के साथ सलाम है, भारत मां के उस दीवाने को
थैंक्स हेमंत करकरे और सालस्कर का, हमें ये पाठ सिखाने पर
लीडर सिर्फ हुक्म नहीं सुनाता, गोली भी खाता है मौका आने पर
थैंक्स उन सभी के परिवार का, जिन्होंने ये बारह साल कैसे जिए हैं
हमारी तो बस आंखें नम हुई, उन्होंने तो खून के आंसू पिए हैं
मेरी ये कविता पसंद आये तो वाह-वाह की जगह बस इतना करना
आज अपनी दुआओं में इन वीरो और उनके परिवारों को याद रखना
मेने तेरी खमोशियो को पढ़ा है
मासूम बनी निगाहो को पढ़ा है
पढ़ा है हर वो एहसास जो दिल मै दबा है
मेने तूझे पढ़ा है
फिर भी दूर हू तुझसे अभी
शायद अजनबी हू कोई खास नही
पर तू कितने खास है,तूझे ये एहसास नही ।