जब साँसें उखड़ने लगी
अंत की आहट जकड़ने लगी
कुछ पल पल छूट रहा था
कतरा कतरा टूट रहा था
आँखों में बढ़ती नमी थी
हवा में हवा की कमी थी
हथेलियों की पकड़ छूट रही थी
जिंदगी की डोर टूट रही थी
बोझिल आँखों ने कहा अब चलते हैं
इस बार बस, अगली बार मिलते हैं
मैंने कहा रुकिए अभी – जाना क्या जरुरी है
बस आ रहा हूँ मैं – हजारों मीलों की दूरी है
बातें तो होती थी – आपके स्पर्श को तरसा हूँ
गोदी में सर रख आपके – बरसो से नहीं बरसा हूँ
ये क्या है जो जीवन से बड़ा हो गया
आपके मेरे बीच, शैतान सा खड़ा हो गया
जाने की न कहो, मुझे आपके साथ जीना है
आपके चरणों में मेरे मंदिर और मदीना है
मैं यहाँ से दौड़ा, वहां साँसें डगमगा रही थी
किनारे पर खड़ी जिंदगी तिलमिला रही थी
पता है की जिंदगी से ज्यादा मौत होती है शातिर
कितना लड़ी होंगी वो मेरी आखिरी हठ की खातिर
मैं पहुंचा तो मां से कुछ इस कदर बात हुई
बिन बोले बिन कहे – कब सुबह से रात हुई
वो जो ठहरी थी, मेरी हठ निभाने के लिए
अगले दिन चली गयी, कभी न आने के लिए
मार्मिक
Speechless….