यही हलकी हलकी ठण्ड थी, और यही थे दिल्ली के रास्ते
वो अपने और में अपने कॉलेज से यहाँ आया था, किसी काम के वास्ते
जल्दी ही पहचान हो गयी और होने लगी बात
मुझे उनका और उन्हें मेरा, पसंद आने लगा था साथ
किस्मत का मिजाज भी कुछ रंगीन होता जा रहा था
जिस काम को कुछ दिनों के लिए करना था, वो हफ्ते दर हफ्ते बढ़ता जा रहा था
जल्द ही वो मुकाम आ गया, जब लगा कि क्या जिंदगी साथ गुजारी जाए
जिस अजनबी का मुद्दत से था इंतज़ार, वो फिर हमें उन्ही में नजर आये
कुछ उम्र का तकाजा था, और ऊपर से उनका साथ
दिल्ली के नज़ारे देख कर, निकल पड़ी हसरतो कि बात
मैंने कहा कि काश इन सड़को पे में भी अपनी गाडी दौड़ाओ
शाम ढले तो एक बड़े से घर में लौट के आउ
रात के खाने पे तुम्हे लेकर हल्दीराम जाना
और लौटते में तुम्हारी जिद पर इंडिया गेट घूमते हुए आना
छुटी के दिन लाजपत नगर और करोल बाग़ में खरीददारी
खुद के लिए सूट और तुम्हारे लिए कुछ वेस्टर्न और साडी
घूमते हुए हम निकल पड़े अप्पू घर कि और
वो बोले कैसा लगेगा जब यहाँ गूंजेगा हमारे भी बच्चो का शोर
दिन बीते, बीते महीने और बीत गए कई साल
आज यूँही दिल्ली में अचानक मुझे आ गया यही ख्याल
आज गाडी है और बड़ा घर भी है मेरे पास
सपनो का सच होना, आ रहा है मुझे रास
आजकल लाजपत, करोल बाग़, इंडिया गेट भी जाता हू
बीबी बच्चो के साथ कभी कभी हल्दीराम पे भी खाता हू
जो जैसा था, जहाँ था, वैसा ही है, वहीँ है
बस जिनके साथ देखे थे सपने, वही साथ नहीं है
जिंदगी कि राह में हम ऐसे हुए जुदा
आजतक तो मिले नहीं, फिर कभी मिले न मिले ये जाने खुदा
जहाँ भी हो ये जान लो कि मेरे सपने हुए है पूरे
आशा है कि तुम्हारे भी नहीं रहे होंगे अधूरे