अटल जी की द्वितीय पुण्यतिथि (१६ अगस्त २०२०) पर आयोजित इ-कवि सम्मेलन में मेरी प्रस्तुति
कभी यूँ भी हो की आप फिर वापस आएं
आमने सामने बैठ कर हम दोनों बतियाएं
पूछना है कैसे रखते थे –
मुसीबत कितनी भी हो चेहरे पर शांत भाव
कल कल बहती नदी में जैसे अजब सा ठहराव
अपने या पराये, सबसे मिलनसार स्वभाव
शायद ही था किसी से आपका मन मुटाव
कहूंगा की ये सिखाइये –
सबको साथ लेकर चलना पर बातें अपनी ही मनवाना
बरसों से बंद पड़े तालों को अपने चातुर्य से खुलवाना
यू ऐन में हिंदी भाषा का डंका बजवाना
कारगिल में दुश्मन को नाकों चने चबवाना
जानना है आपसे –
कि जब हर तरफ शकुनियों का फैला कूट जाल था
सत्ता रहेगी या जाएगी ये बहुत बड़ा सवाल था
उसूलों से न किया समझौता और एक वोट से गिरी सरकार
कैसे आदर्शो के पैमानों पर और ऊँचा उठ जाते थे हर बार
हाँ ये भी पूछना है –
कैसे अपने विचार और तेवर यकायक बदल पाते थे
तूफानों के बीच भी हिम की तरफ अडिग नजर आते थे
कि घर जाकर कट्टर दुश्मन को भी गले लगाना
और जो उठी नापाक नजर तो नाकों चने चबवाना
कहूंगा आपसे की समझता हूँ
कंधार में दरिंदो को छोड़ने पर आपको पीड़ा तो हुई होगी
परिजनों का विलाप देख कविह्रदय की ये मज़बूरी रही होगी
क्यों आपको ऊंचाइयों का अकेलापन पसंद नहीं था
जहाँ जनमानस का साथ मिले उनका अटल वहीं था
और अंत में
ओजस्वी वक्ता जो अपने मौन को भी सुनवा ले
वो शांति दूत जो परमाणु परीक्षण भी करवा ले
वो महापुरुष जो मौत से ही जूझने का इरादा बना ले
१५ अगस्त को आये यम को एक दिन और रुकवा ले
ऐसे अटल जी से मुझे ये कहना
आपके आदर्शो पर चलने का करते रहेंगे प्रयास
चरण कमलो में आपके नमन करे ‘विश्वास’
(ये रचना ‘खिलते हैं गुल यहाँ’ में प्रकाशित हो चुकी है)
बहुत खूब शब्द अटल जी के लिए
Wow Sir