चलो अच्छा हुआ
एक ख़त्म हुआ किस्सा
बना था जिंदगी का हिस्सा
तोड़ कर वो सारे नाते
जो लम्बे निभा नहीं पाते
दिखावे के रिश्ते टूटे
ढीली पकड़ के हाथ छूटे
बेवजह के दिखाए सपने
कभी थे नहीं जो मेरे अपने
बन बैठे थे वो मेरे खुदा
अच्छा हुआ, हुए जुदा
चलो अच्छा हुआ
दौर ख़त्म हुआ बंदिशों का
दिल से दिल की रंजिशों का
न अब किसी का इन्तेजार
बस अब खुद से करेंगे प्यार
लौटी नींद दिन का चैन
अब ना रह्नेगे भीगे नैन
न सजना न रिझाना किसी को
बेहतरी न दिखाना किसी को
तेरे नहीं अब खुद के ख्वाब जीना है
उधड़ी जिंदगी कतरा कतरा सीना है
चलो अच्छा हुआ…