किसी तरह की अपेक्षा ही
जब न बची हो रिश्तों में
कुछ भी न हो एकमुश्त
सब थोड़ा-थोड़ा किश्तों में
दूर दूर तक जहाँ नजर जाए
सब वीराना नजर आता है
|अकेला होने से, अकेला होने
का दुख ज़्यादा सताता है
रात जो कटी हो करवटें
बदलते और घडी ताकते
चेहरे पर पड़ती धूप को जब
सुबह अपने हाथों से ढांकते
उस लम्हा बस जरुरत है
मात्र एक अदद हाथ की
ख़ालीपन को चीरते हुए
बस किसी के साथ की
वो जो छोड़ रहा है धीरे धीरे
उसे जीवन में वापस लाना है
किसी के जहन में है अभी वो
ये कैसे कर उसे बतलाना है
कोई तो जीने की वज़ह हो
कोई अनजानी सी चाहत
दो बोल गर कोई बोले मीठे
मिले दिल को सुकूं और राहत
किसी का हो फिर इंतजार
किसी का तो उसे दीदार हो
कोई तो अपना समझा किये
किसी को तो वो प्यार हो