जैसे तैसे गुज़रा ये साल, नया आने को है
इक तूफान की तरह जो आया, अब जाने को है
कुछ इस तरह काटा, कुछ इस तरह बीता है
बहुत-कुछ खोया, और थोड़ा-बहुत जीता है
यूँ तो किस्से-कहानी होते हर पल, हर हाल में
पर बड़ी अजीबो गरीब दास्तानें है इस साल में
ताकती खिड़कियां, सूनी गलियां, घरों में जकड़े
कभी अपनों का, तो कभी खुद का हाथ पकड़े
दरीचे दरवाजों से न सही, तसव्वुर-ख्वाबों में अपनों से मिले
जो करीब से समझा, तो कुछ रिश्ते टूटे, कुछ रिश्ते खिले
महफ़िलो के चश्मोचिराग, चार कन्धों को तरसे
कहकहों की लड़ी लगाने वाले भी जार जार बरसे
बहुत रुलाया साल ने, पर फिर भी रोने ना दिया
हर लम्हा किसी अंदेशे ने, चैन से सोने न दिया
ऐ ज़िंदगी सुन, ऐसे साल से भी हमने ख़ुशी के लम्हे चुराए हैं
गले न लग सके तो क्या, अपनों को दूर से देख मुस्कराये हैं
जिन्हे हमारे वक्त की शिकायत थी, उन्हें भी समय दे पाए हैं
कुछ ख्वाबों से किया समझौता, पर कुछ नए मुकाम पाए हैं
खुद के अंदर झाँका, बहुत कुछ नया नजर आया है
इस बीते साल में हमने, एक नए ‘विश्वास’ को पाया है
रात स्याह घनेरी थी, अब एक नयी सुबह खिली है
तूफान में घिरी कश्ती को किनारे की झलक मिली है
जूझने का है इरादा पूरा, और हौसले भी बुलंद हैं
तू जो भी दिखा ए ज़िंदगी, हम तेरे एहसानमंद है
वाह जिंदगी !!