होंठो पर आते गीत
शब्द शब्द में तुम होते हो ,
तब होंठो पर आते गीत।
हर्फ हर्फ में नाम तुम्हारा ,
तब होंठो पर आते गीत।
इस दिल में तेरी यादों को ,
लिखने बैठु जब जब मैं।
हर धड़कन पर नाम तुम्हारा ,
तब होंठो पर आते गीत।
कभी रात हो जाऊं तन्हा,
और याद में तुम्हे करूँ।
हर सिसकी पर नाम तुम्हारा,
तब होंठो पर आते गीत।
और सामने जब आ जाओ,
नजर चुरा लू तब तुमसे।
नजर नजर पर नाम तुम्हारा,
तब होंठो पर आते गीत।
कभी कहो लगते है सुंदर ,
कितने प्यारे नयन तुम्हारें।
नयन नयन में तुम बसते हो ,
तब होंठो पर आते गीत।
सच पूछो तो गीत नही ये ,
लगता है बस तुम ही हो।
साथ तुम्हारा जब मिलता है ,
तब होंठो पर आते गीत।
नहीं गर्ज कोई
अगर चाहते वो कि हम उनको भुला दे,
हमें एक कोशिश में नहीं हर्ज कोई।
अगर सोचते है कि खुद में खुदा वो ,
है तो सही पर न हमें गर्ज कोई।
उन्हें क्या लगा दिल की वो आरजू है,
चलो हमने माना पर नहीं अर्ज कोई।
ये माना मरीज-ए- दिल की शिफा वो,
जरूरत नहीं हमको ये अलग मर्ज कोई।
किया हमने उनके लिए गर बहुत कुछ,
मोहब्बत थी ये न था ये फ़र्ज़ कोई।
शिकायत हमें भी है बहुत बेबफा वो,
हमारी शिकायत न करे दर्ज कोई।
चलो छोड़ते है है ये बातें पुरानी,
ये रस्म -ए- मोहब्बत है नहीं कर्ज कोई।
आख़िरी मुलाक़ात
शायद
आख़िरी थी वो मुलाक़ात,
जिसमें आंखे थी,
रही एक दूसरे को ताक,
अंतर्मन भी था रहा,
इक दूसरे में झांक,
शायद
आख़िरी थी वो मुलाक़ात,
जब नहीं हुई,
शब्दों में कोई बात,
मौन प्रतिपल,
कर रहा था आघात,
शायद
आख़िरी थी वो मुलाक़ात,
थी खुली दोपहर,
नहीं थी तब रात,
बन्द थे सब रास्ते,
खुले थे जज़्बात,
शायद
आख़िरी थी वो मुलाक़ात,
अरमान से वाकिफ़ थे,
मजबूर थे हालात,
बिन बोले मिले थे उत्तर,
जितने थे सवालात,
शायद
आख़िरी थी वो मुलाक़ात,
हलचल तो थी,
दोनों के दिल में थी रवानात,
बस सोच अलग थी,
अलग थे खयालात,
शायद
आख़िरी थी वो मुलाक़ात
शायद
आख़िरी थी वो मुलाक़ात