दर्द
जब मैं कुछ नहीं करता हूँ
तब मुझे दोषी करार दिया जाता है।
जब कुछ करूँ तो फिर मेरा क्या हश्र होगा?
मैं डरता हूँ नजरों के अंधियारो से
डरता हूँ शब्दों की तलवारो से
सहमा हूँ रिश्तों के बटवारे में
पला हूँ आँसुओ की आँखों में
चार आँखे वाले मेरे जीवन के सफर को क्या जानेंगे ?
मै तो खुद कभी -कभी अपने सफर के रास्तों को भूल जाया करता हूँ।
अपनी इसी नाकामी को आपसे जाया करता हूँ।
शायद मेरे पास नकाब एक ही है,
इसलिए लोगो को पसंद नहीं आया करता हूँ ।
पर मैं एक पेड़ हूँ जो फल आपके लिये लगाता हूँ, फिर भी बन्द दरवाजे देख पाता हूँ ।
पदो की लालच में मुझे इस्तमाल किया गया ,
उन्होँने खुद अपना वक्त बर्बाद किया,
मेरे लेखन को ओदारने से विचार नहीं बदलेंगे
और उत्तेजित हो जाएंगे
क्या लिखूं अपने जीवन के सन्दर्भ में , उम्र बित जाएगी
इसलिए मैं निर्दोष -निर्भय -निराश्रय रहना चाहता हूँ ,
सभी दुश्मनों को मित्र बनाना चाहता हूँ।
रब के दर!
आज मेरे पागलपन पर तुम मुस्करा उठी
पर कुछ कहा क्यो नहीं मुझे
मैं भी तो कुछ बोला नही
इसलिए हर कोई सुनाता है मुझे
पर नफरत है या प्यार
ये समझ नहीं आता मुझे
तुम्हारी मासूम मुस्कान ही काफी थी मेरा दिन बनाने के लिए
इसलिये रब के दर पर आज मिली तुम मुझे
तुम्हारे प्रत्यंग तो नहीं हो सका
पर पास से गुजरा
और सुकून मिल गया मुझे
चाह थी कि दोबारा तिलक के बहाने रब के दर पर आऊँ
पर यह सही नही लगा मुझे
मुनासिब समझा बिन देखे ही तुम्हे अलविदा कहना
इसलिए दिल दबाना पड़ा मुझे
सोचा एक बार पलट कर देखूँ तम्हारी झलक
पर सडक ने रोक लिया मुझे
मंजिल पाने पर तुम्हारा इन्तज़ार कर रहा था
क्योंकि तुम्हारे साथ खुशी महसूस करनी थी मुझे
तुम दंभ नही रखती पर थोडी भोली हो
हमारे हर दिन वो ऐसे थे जैसे होली हो
पर “शायर ” की नज्म पर पानी फिर गया
तब से गुलाल लगाना चाहते हूँ तुझे
इसी दिन का इंतजार है मुझे
यह दिन भी कभी आएगा और चला जाएगा
फिर तुम मुस्कुराती दिखोगी …..
कुछ कहोगी नही मुझे ।