(1)
खफा होना गलत नहीं, पर वजह तो बताया कर
रूठते भी अपने ही हैं, अपना हक़ जताया कर
ये तेरे खामोश लब और झुकी झुकी सी पलकें
माना मोहब्बत नयी है, इतना भी न शरमाया कर
जब तलक न देखें तुम्हे, चैनो-सुकूं मिलता नहीं
चंद लम्हों के लिए सही, छत पर तो आया कर
ये तुम्हारी हंस के बोलने की आदत का क्या करें
हमारी नजर लग जाएगी, काला टीका लगाया कर
मुद्दत से ना मिले हो, ना आयी तुम्हारी खबर ही
रूबरू नहीं तो सपने में ही, हालेदिल सुनाया कर
मुकम्मल ना हुई तो क्या, हमने शिद्दत से करी थी
अब खत लौटा कर मुझे, इस कदर न पराया कर
मेरे हर लफ्ज में तुम हो, मेरी हर एक ग़ज़ल तेरी
महफ़िलों में सुना कर, दुनिया को न रुलाया कर
(2)
सहा था हमने तेरा यकायक चले जाना
बरसों याद आया वो जाते हुए मुस्काना
तेरे बाद यूँ तो लिखे कई गीत ग़ज़ल हमने
पर नहीं रास आता अब उन्हें गुनगुनाना
कसक सी उठती है तन्हा शामों में अक्सर
वो बीती बातें-बेबातेँ फिर रूठना मनाना
मुकम्मल न होगी ये हमेशा से पता था
बिछड़े तो किस्मत का क्यूँ करें बहाना
हाथो में तेरा हाथ और वो हसीं वादियां
गज़ब ही था हमारे इश्क़ का जमाना
(3)
थोड़ी इज्ज़त क्या दी, उन्हें तो गुमान हो गया
कांच के टुकड़े को कोहिनूर सा भान हो गया
इनकी गलतफहमियों की फेहरिस्त लम्बी है
फ़क्त मुस्काने से इश्क का अनुमान हो गया
जिन्होंने कभी किसी के लिए किया कुछ नहीं
जरा हाथ बढ़ाके उम्र भर का एहसान हो गया
साहिल पर बैठ लगा रहे अंदाज तूफान का
चंद बूँद क्या भीगे वो कहते हैं स्नान हो गया
खुद बेहाल करके मुझसे मेरा हाल पूछते हैं
मेरी सजाई महफ़िल में मैं मेहमान हो गया
यूँ तो हमारे रूठने मनाने के कइयों किस्से है
हमने नजरें क्या चुराईं वो बदजुबान हो गया
फिर से चोट खायी हमने और फिर से टूटे हैं
दिल के मुसाफिर को और थोड़ा ज्ञान हो गया