यादें वो बचपन की
ओह क्या मजेदार दिन थे वो ।
बड़े मस्ती के पल थे वो ।।
मेरा बचपन था बेहद रंगीन,
दुख एवं कष्ट से विहीन ।
रोज मेरे हँसी से पूरे घर को लुभाता,
स्वादिष्ट पकवान प्रतिदिन खाने को चखता ।।
कैसे बयाँ करू सुबह का वो पल,
सूरज दिखता मानो एक लाल फल ।
हर रोज अपनी छोटी बहना से लड़ता – झगड़ता,
फिर माँ के आगे कान पकड़ के खड़ा रहता ।।
मस्त नहाकर दादी के साथ मन्दिर में पूजा करता,
तो फिर बड़े दुलार के साथ माँ से खाना भी खाता ।
साथ जाते बाहर टहलने हम दादा – पोते,
इसी बहाने मुझे वो रोज दो टाॅफी भी दिलाते ।।
प्रतिदिन पापा अपने काम में जाते वक़्त पूछते :-
“आज क्या लाऊ ?”
मैं सोचता चलो इन्हीं से अपनी मनपसंद की आइस्क्रीम मंगाऊँ ।
पूरे दिन हम दो भाई – बहन खूब खेलते,
थककर खूब मजे से शरबत भी पीते ।।
दोपहर में खाने के बाद दूरदर्शन में कुछ मनोरंजक कार्टून को देखता,
तो शाम को दादी के साथ मिलकर भजन करने का लुफ्त उठाता ।
तभी रात को हम दो भाई – बहन साथ में चित्रकारी करते,
और उसके बाद रात्री भोजन कर आराम से सो जाते ।।
मुझे आशा रहती थी एक नई खुशबुदार सुबह का,
नई सूर्य का,
नई प्रकृति – वातावरण का,
जिसे मैं हर पल सहेज कर अपने दिल में रख सकूँ,
अनुभव कर सकूँ उस खुशनुमा पल का ।।
आज भी याद दिलाती हैं मुझें वो सब ।
नजाने कैसे – कैसे, कितनी जल्दी, वो दिन बीत गए कब ।।
सच में क्या मजेदार दिन थे वो ।
बड़ी ही मस्ती के पल थे वो ।।
जीवन – एक रहस्य
क्या हमने कभी सोचा – ‘क्या है यह जीवन ?’
क्या हमने कभी भी सोचा – ‘क्यो है यह जीवन ?’
घबराइए नहीं यह मेरा जीवन के ऊपर एक सामान्य सा है चिंतन ।
आखिर क्या और कैसा वर्णन है इस जीवन का ?
क्या मोल है इस भवसागर रूपी जीवन का ?
चलो कोई नहीं जरा साथ विचार करते हैं इसका,
क्यूंकि विचार एवं चिंतन ही तोड़ है हर समस्याओं का ।।
जीवन मानो है एक सागर रुपी विशाल,
है एक घोर अन्धकार रुपी जंगल,
है एक अनंत रुपी गहरा ताल,
है एक विशालकाय महल,
जिसके मर्म को समझ पाना नहीं है इतना सरल ।
कहा तो ऐसे भी जाता है कि जीवन है एक झरना,
निरंतर वेग से है जिसका बहना ।
परंतु यह भी एक सत्य है कि जीवन है एक ज्योति,
जिसकी मदद से बनी रहतीं हैं हमारी ह्रदय गती ।।
जीवन में आधुनिकता भी लाना जरूरी है, जनाब ;
परंतु आधुनिकता के पीछे जीवन को घसीटना उचित होगा या खराब ।
जीवन है एक रस्युक्त शराब,
जिसकी हर एक चुस्की है हर नवाबो का ख्वाब ।।
विचार करो जीवन है एक मयरुपी पहेली,
प्राणी का तन ही है इसका एकमात्र सहेली ।
हर शरीर है जीवन रुपी सुंदर उपवन की माली,
जो कतई न रह सकती, बिछड़कर अकेली ।।