यूँ ही ख्याल आया –
जब समझ ये आ जाये
की कुछ ही साँसे बाकी हैँ
ये लगने जब लगता हो
अब चंद लम्हों की झांकी है
जब पता चले अंतिम पल है
अब यहाँ वापस नहीं आना
इंसान जीना चाहता होगा या
मृत्यु की गोद में समा जाना
जब शरीर से रूह का बंधन
छूट कर टूट रहा होता है
उस बिछड़ने की प्रक्रिया में
दोनों या कोई एक रोता है
रूह क्या खुश होती होगी
उतार उस तन का चोगा
जिसने बंधक बनाया था
स्वार्थी शरीर तड़पता होगा
यदि शरीर को संतुष्टि होगी
वो छोड देता होगा मुस्काके
यदि कुछ अधूरा रह गया हो
लड़ता होगा संघर्ष जताके
तन के कतरे रूह को कसते
बदहवास से जोर लगाते होंगे
फिर अचानक से मिले संतुष्टि
सारे बंधन ढीले पड़ जाते होंगे
क्या ऐसी होती होगी मृत्यु?