साक्षरता
घुटन भरे परिवेश के, बाहर भी निकल कर देखो।
साक्षरता के इस अमृत से, बंधी बेड़ियां तोड़ फेंको।।
हर कस्बे हर गांव में, गलियों में इसका करो प्रचार।
शिक्षा के मूल मंत्र को, बनाओ जीवन का आधार।।
सीमितता और संकुचन तो बनाते हैं, मन में घर।
बगैर शिक्षा और ज्ञान के भटकोगे इधर-उधर।।
हर जाति और मजहब में इसकी ज्योत जलाना है ।
कुछ वर्षों व दशकों में साक्षर इन्हें बनाना है।।
कागज कलम में वह ताकत नहीं, है जो तलवार में।
गुजरे पलों को आज सुधारो, फंसो न यूँ मझदार में।।
वह लम्हे याद आते हैं
रात्रि के तिमिर को चांद देता है प्रकाश
भटके राही को राह दिखाता है चिराग
वहीं रोशनी वहीं चांद फिर मिलते हैं
बीते लम्हों की याद में खिलते हैं
चलती पतवार डूबता सूरज
हंसते मुस्कुराते खेलते सहज
दूर क्षितिज में नजर आते हैं
वह लम्हे फिर याद आते हैं
तमन्नाओं के घेरे में बीत रही उमर
विचलित उदास आया रुदन उभर
वह लम्हे फिर याद आते हैं
तब उस ईश्वर के पास लाते हैं
धीरे-धीरे जिंदगी कुछ ऐसे मोड़ लाती है
गुजरा वक्त याद कर रुआंसी छा जाती है
कल को भुला भविष्य के सपनों में खो जाते हैं
वर्तमान में कभी कभी वह लम्हे याद आते हैं