संघर्ष अभी ज़ारी है
मेरा संघर्ष अभी ज़ारी है।
अब तेरे टूटने की बारी है।
तू मेरे हारने पे खुश मत हो
मैंने उम्मीद नहीं हारी है।
मौन रहना तो दोष है लेकिन
व्यर्थ चर्चा बड़ी बीमारी है।
चार चमचे क्या साथ रखता है,
सब समझते हैं- सदाचारी है।
बेइमानों से बेइमानी पर
बात करना ईमानदारी है।
व्यर्थ सबसे उलझने वालों से
न उलझना ही समझदारी है।
तेरे करीब रह के देखा है,
ज़िंदगी मौत से भी भारी है।
कोई लेकर भी हक़ जताता है
कोई देकर यहाँ आभारी है।
दीन-दुनिया की बात पर ठगना
उसकी खातिर दुकानदारी है।
ऐ मेरे यार
ऐ मेरे यार! मुझे ले ले, मेरे ख्वाब न ले।
तू दर्द दे दे मगर दर्द का हिसाब न ले।
तेरे घर के लिए बस ये चिराग काफ़ी हैं
यार, जल जाएगा, तू मान, आफताब न ले।
जर्रे-जर्रे में है, तुझमें भी नज़र आएगा
तू बात-बात में यूँ मजहबी किताब न ले।
मेरे भाई! तू सामने से कत्ल कर मेरा
मुझको छलने को तू चेहरे पे यूँ नकाब न ले।
मेरे महबूब का अजीब दबदबा है ये
सवाल दाग दे अपना, मगर जवाब न ले।
मेरी यादों के नशे में ही डूबा रह क्योंकि
मुझको डर है- तू मुझे भूलकर शराब न ले।
तू बुरी चीज़ को अच्छी नजर से देख तो ले
फिर तेरे हाथ में है, ले भला, खराब न ले।
तुम बोल तो दो
तुम्हें किस बात से परहेज है तुम बोल तो दो।
खुलेंगे हम भी आपस में जरा दिल खोल तो दो।
खरीदे जा नहीं सकते सभी इंसान धन से
बिकेंगे हम मुहब्बत से मुहब्बत मोल तो दो।
निभाएँगे कहाँ तक भूमिकाएँ मौन यूँ ही
कहें हम भी कोई संवाद ऐसे रोल तो दो।
निकल आएगा अपना भी वज़न कुछ कम-ज़ियादा
हमें अपने तराजू में कभी तुम तोल तो दो।
न टोकेंगे तुम्हारी गलतियों पे हम कभी भी
जिसे पी जागते सोएँ हमें वह घोल तो दो।
बिना मौका दिए ही आँक लेते हो हमें तुम
रचेंगे हम नया इतिहास तुम भूगोल तो दो।
समझदारों की दुनिया में किसे सुनता है कोई
सुना पाएँगे हम अपनी, सखा बकलोल तो दो।
दिखा देंगे तुम्हें हम आइना नज़दीक से पर
‘’नहीं तुम दूर जाओगे’’ वचन अनमोल तो दो।
- डॉ. राजीव कुमार सिंह (24.09.2020)
क्या खूब लिखा है !!