मेरे महबूब
मेरे महबूब जमाने की तू फिकर ना कर,
यह जमाना तुझे हमेशा सताता रहेगा,
सोचती है अगर तू बदल देगी दुनिया,
बेवजह ख्वाब देख कर तू गुमान ना कर.
मेरे महबूब अंदाज नहीं जिंदगी का,
सफर कटते नहीं अक्सर रुसवाई के साथ,
सोचती है अगर तू बदल देगी सोच जमाने की,
बेवजह ख्वाब देख कर तू इंतजार ना कर.
मेरे महबूब अगर समझ है तो,
वफा कर जमाने से बेवजह बात ना कर,
सोचती है अगर तू अपना मुझको,
बेवजह खुद को रुला कर मुझे परेशान ना कर.
मेरे महबूब ख्याल रख मेरी फिकर ना कर,
जमाने के साथ जीने की आदत अब डाल ले,
सोचती है बदल देगी रूठ कर बीती बातों को तू,
बेवजह मुझे सता कर तू इनकार ना कर.
मेरे महबूब आसान नहीं वक्त यहां,
बेवफा बोलकर तू मेरा अपमान ना कर,
सोचती है अगर तू बता देगी दुनिया को,
बेवजह मेरी मोहब्बत को बदनाम ना कर.
खोया खोया मन
खोया खोया मेरा मन खुद से बातें करने लगता है,
आंखें मूंदकर गहरी सांस लें यादें ताजा कर लेता है,
मन खोल कर उनके आने का एहसास कर लिया करता है|
खोया खोया मेरा मन खुद से बातें करने लगता है,
बारिश की बूंदों में खुद उनका जिक्र किया करता है,
ठंडी हवाओं को उन्हें याद कर बाहों में भर लिया करता है|
खोया खोया मेरा मन खुद से बातें करने लगता है,
मिट्टी की खुशबू में अपनी मुस्कुराहट ढूंढ लिया करता है,
आईने में खुद को देख याद उन्हें कर लिया करता है|
खोया खोया मेरा मन खुद से बातें करने लगता है,
जिक्र मेरे प्यार का दिल कर ही नहीं पाया उन से फिर भी,
तस्वीर उनकी आंखों में छुपा लिया करता है,
खोया खोया मेरा मन उन्हें अपना मान , खुद से बातें करने लगता है|
नासमझ बन जाते हैं
समझदार है दुनिया सभी,
वह नासमझ बन जाते हैं,
प्यार जताते हैं पूछती हूं,
तो वह मुकर जाते हैं|
हर वक्त उनके लिए,
फिक्र हम जताते हैं,
हाल उनका पूछती हूं,
वह बड़ा मिजाज दिखाते हैं|
गीत गजल उनके लिए,
दिन-रात गुनगुनाते हैं,
दुनिया समझ जाती है,
और वह भोले बन जाते हैं|
आंखें मिला कर देखती हूं,
तो वह नजरे चुरा जाते हैं,
जाती हूं प्यार जताने,
वह है कि देख कर छुप जाते हैं|
हम सज धज के उनके,
होश उड़ाने जब सामने जाते हैं,
तारीफें वह गैरों की कर,
मेरा मन खूब जलाते हैं|
अपना बनाने की कोशिश में,
इंतजार करती जाती हूं,
दिल में नाम उनका लेती हूं,
वह नजरअंदाज कर जाते हैं|
यादों में उनको बसा कर जब,
हाल-ए-दिल उनको सुनाती हूं,
प्यार भरी आंखों से देख,
वह झूठा मुझे ठहराते हैं|
समझदार है दुनिया सभी,
वह नासमझ बन जाते हैं,
प्यार जताते हैं पूछती हूं,
तो वह मुकर जाते हैं||
निगाहें मिल गई
फिर निगाहे मिल गई,
दूर थी दुनिया की हर रूख से,
वह समय से पहले मिल गई,
सोचा ना था जिंदगी की घड़ी,
यूं बीत जाएगी उम्र देखते,
दूर खड़ी थी मैं सबसे |
जाने कहां अटक गए रास्ते,
ना धूप थी ना रौशनी,
बस वक्त ही वक्त की तकरार थी,
मौसमों में कुछ बदलाव था,
पर वक़्त का कुछ अंदाज ना था,
फिर निगाहें मिल गई |
लेकिन मैं दूर थी कितनी,
खामोशी थी हर वक्त,
हर जगह पर हलचल थी,
मन में थी बदल गई दुनिया,
दो पल में जाने कैसे रूठ गई,
मैं तो दूर खड़ी थी |
सब जगह एक पैसा है,
वक्त नहीं बस हम है सिलसिला नहीं,
जाने निगाहे कहां अटक गई,
दिल में सुई चुभ गई थी,
मेरी निगाहे जो मिल गई थी,
पर उदास मैं दूर खड़ी थी |
Congratulations Ruchi,
Both the poems are very sweet melodious, hope for bigger achievements in future.
Keep it up!
Thank u 🙏🏻
शानदार हुकम
Thanku 🙏🏻