हे राम आप परम पूज्य मर्यादा देव महान हो
सनातनियों की चेतना और हमारा जहान हो
प्रभु आप जब हुए वो युग और था
आदर्श व महान् मूल्यों का दौर था
थी पर हद थी कैकई की हसरत की
मजबूरियों की सीमा थी दशरथ की
सीमा में था उस पापी धोबी का शक
दायरे में थे सबके अधिकार सारे हक़
रावण राक्षस हो कर भी शायद नहीं था
विभीषण ने साथ छोड़ा पर पास वहीं था
भरत ने आपके नाम पर राजपाट चलाया
उर्मिला ने भी तो पवित्रता से विरह निभाया
राम आपकी रामायण में आदर्श-मूल्य थे सब के
कुछ देव बन पूजे गए कुछ असुर कहे गए तब के
प्रभु अब इस कलयुग में हमें दिखाओं रास्ता
मर्यादा,सीमा से जहाँ नहीं किसी का वास्ता
अपयश की सुध किसे मर्यादा का क्या ज्ञान
रिश्तो की अब न सीमा रही ना बचा सम्मान
इस युग में न कोई सीता यूं महल छोड़ने देगी
वन में आ भी गई तो हर पल का चैन हर लेगी
जूठे बैर वाले प्रेम का यहाँ किसी को भास नहीं
अपनों का ही अपनों पर अब कोई विश्वास नहीं
सगे पिता को दिया वचन कोई पुत्र नहीं निभाता
सौतेली मां के कर्मों को फिर कैसे माफ कर पाता
भरत सा न कोई राजा, लखन से रहे अब भाई नहीं
राम से मिलने को, कोई अहिल्या अब पथराई नहीं
पूजा घर में सजी रामायण से निकल राम राह दिखाओ
आपके आदर्शो को इस युग में कैसे समझें ये समझाओ