जब भी पूछा ‘क्या सोच रहे हो’?तूने ‘कुछ नहीं’ बोला हर बार उस ‘कुछ नहीं’ के पीछेमैंने हमेशा सुने –तेरे अल्फ़ाज़ अनकहेवो ताने जो तुमने मौन सहेवो तेरे अश्क जो नहीं बहेऔर जज्बात जो उलझे रहे उस ‘कुछ नहीं’ के पीछेमैंने महसूस की –छटपटाहट तेरे भीतरमुझे खो देने का डरदबी हसरतों के समंदरअनछुए ख़्वाबों के…
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देश से दूर
अपने देश से दूर आ बसाये देश लगने लगा है अपनादेह और मन की ये यात्राअब लगे जैसे कोई सपना जब आया, था मैं अनजानासब तरफ थी अजनबी राहेंइसने कुछ ऐसे अपनाया किमुस्काते चेहरे हैं खुली बाहें उम्मीद के घरोंदे कोतजुर्बों से सजाया हैघर से दूर इस घर कोशिद्दत से बसाया है मेरे गाँव के…
आजादी के रखवालो
ओ आजादी के रखवालो, तुम सोते न रह जानाइसे बचाने की खातिर, तुम अपना धर्म निभाना बहुतों ने खून बहाया, बहुतों ने जान गँवाई हैबहुत महँगी कीमत देकर, ये आजादी पायी है जब मिली तो मिली खंड खंड दुष्कर आजादीख़ुशी की बेला में लिपटी हृदय विदारक बर्बादी हर ओर से घेरने को, ये दुश्मन ताक…
Thanksgiving / थैंक्सगिविंग (26/11/2020)
थैंक्सगिविंग इस बार उस दिन आयी हैजब मैंने थैंक्स देने वालो की एक लम्बी फ़ेहरिस्त बनाई है – पहला थैंक्स तुकाराम के बाजूओं की उस जकड कोगोलियां खाते रहे, पर ढीले न होने दिया उस पकड़ को मरते मरते भी, अशोक काम्टे के उस निशाने कोथैंक्स के साथ सलाम है, भारत मां के उस दीवाने…
वो गीत
जब पहली बार ये गीत सुना कि “आप जैसा कोई मेरी जिंदगी में आये तो बात बन जाये….” इसने न जाने कितने अरमान जगाये और लगा कि काश अब आ ही जाए और जब वो आये तो क्या क्या हुआ क्या बताये – रात कि नींद उडी, दिन का चैन चेहरे पर हवाइयां, अश्रुपूरित नैनहर…
खुश नजर आइए
आप जिन्दा हैं जनाब, खुश नजर आईये हर चलती सांस के लिए, खुल के मुस्कराइए खफा होने के तो मिलेंगे बहाने बहुत किसी एक बात पर तो गले लग जाइये आप जिन्दा हैं जनाब…… खिलखिलाता वो शख्स , शायद अंदर अकेला हो उसको अपने आस पास होने का एहसास दिलाइये आप जिन्दा हैं जनाब…… गिले…
मुझे चाहिए
जिंदगी में कुछ पाना है, तो अंदर एक आग चाहिएआसमां में फैले सितारों में, मुझे अपना भाग चाहिए अभाव और गर्दिश में, बन पड़ते हैं कुछ ऐसे गीत दुनिया झूम उठे जिस पे, मुझे ऐसी एक राग चाहिए जिन्होंने भूख कभी जानी नहीं, वो दे रहे हैं मुझे ज्ञान तुम्हे पता क्या कि मेरे अरमानों…
अटल संवाद
अटल जी की द्वितीय पुण्यतिथि (१६ अगस्त २०२०) पर आयोजित इ-कवि सम्मेलन में मेरी प्रस्तुति कभी यूँ भी हो की आप फिर वापस आएं आमने सामने बैठ कर हम दोनों बतियाएं पूछना है कैसे रखते थे –मुसीबत कितनी भी हो चेहरे पर शांत भाव कल कल बहती नदी में जैसे अजब सा ठहरावअपने या पराये,…